Part – 1 : दोस्ती और पहली दरार
आयुष और कबीर की दोस्ती मोहल्ले की तंग गलियों से शुरू हुई थी। बचपन में दोनों ने साथ पतंगें उड़ाईं, क्रिकेट खेला, स्कूल की ट्यूशन bunk की और अपने छोटे-छोटे सपनों पर हँसते-हँसते उम्र बिताई।
कबीर हमेशा ambitious और तेज़-तर्रार था। वो हर काम में आगे निकल जाना चाहता था। आयुष इसके उलट था—शांत, संवेदनशील और थोड़ा भावुक।
कॉलेज तक दोनों की दोस्ती इतनी गहरी हो चुकी थी कि मोहल्ले वाले भी कहते थे – “ये दोनों साथ हैं तो पूरा शहर भी छोटा लगने लगे।”
फिर वक़्त ने करवट ली। कबीर ने अपनी मेहनत और practical सोच से बिज़नेस शुरू किया। वहीं आयुष एक private job में लग गया। ज़िम्मेदारियों का बोझ अलग-अलग था, मगर दोस्ती वही रही।
कबीर की शादी घरवालों की पसंद से हो गई। उसकी पत्नी नेहा जब पहली बार आयुष से मिली तो उसके स्वभाव से प्रभावित हो गई। गोरी-सी रंगत, बड़ी आँखें और होंठों पर हर वक़्त मुस्कान।
नेहा ने आयुष से मुस्कुराकर कहा था,
"कबीर अक्सर तुम्हारे बारे में बताता था, लेकिन तुम्हें देखकर लगता है कि उसकी बातें कम थीं। तुम तो वाक़ई बहुत सच्चे दोस्त हो।"
आयुष बस मुस्कुरा दिया। उस दिन पहली बार उसे एहसास हुआ कि कबीर की ज़िंदगी में अब सिर्फ़ दोस्ती नहीं, बल्कि एक नया रिश्ता भी शामिल हो चुका है।
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अकेलापन और नज़दीकियाँ
शादी के बाद भी आयुष अक्सर कबीर से मिलने उसके घर जाता। लेकिन अब एक फर्क था—कबीर ज़्यादातर बिज़नेस में व्यस्त रहता। कई बार उसे दूसरे शहर जाना पड़ता। उन दिनों घर पर सिर्फ़ नेहा होती।
शुरुआत में आयुष बस दोस्त की जिम्मेदारी समझकर नेहा का हालचाल पूछ लेता। लेकिन धीरे-धीरे दोनों की बातें लंबी होती चली गईं।
कभी नेहा पूछती – “आयुष, तुम्हारी शादी क्यों नहीं हुई अब तक?”
आयुष हँसकर कहता – “शायद इसलिए कि मुझे अब तक सही लड़की नहीं मिली।”
कभी आयुष पूछ बैठता – “तुम्हें कैसा लगता है कबीर की बीवी बनकर?”
नेहा हल्की मुस्कान के साथ जवाब देती – “बीवी तो बन गई, लेकिन शायद साथ में दोस्ती कम मिल पाई।”
उसके शब्दों में एक खालीपन छुपा था। आयुष ने उसे महसूस किया, लेकिन ज़ाहिर नहीं किया।
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पहली हलचल
एक शाम हल्की बारिश हो रही थी। कबीर बिज़नेस ट्रिप पर था। घर पर सिर्फ़ आयुष और नेहा थे। खिड़की से आती ठंडी हवा में नेहा चुपचाप खड़ी बारिश देख रही थी।
उसने अचानक कहा –
"आयुष, कभी-कभी लगता है कि शादी ने मुझे वो सब नहीं दिया जिसकी उम्मीद थी। कबीर अच्छा है, लेकिन उसके पास वक्त ही नहीं। घर तो है, लेकिन साथीपन नहीं।"
आयुष उसकी तरफ़ देखने लगा। उसकी आँखों में सचमुच अकेलापन था।
आयुष ने धीमी आवाज़ में कहा –
"नेहा, शायद हर रिश्ता अपनी तरह से अधूरा होता है। बस फर्क इतना है कि कोई उसे छुपा लेता है, और कोई ज़ाहिर कर देता है।"
नेहा ने उसकी ओर देखा। उस नज़र में कुछ ऐसा था जिसने आयुष का दिल तेज़ धड़कने पर मजबूर कर दिया।
बात खत्म हो गई, लेकिन कमरे में एक अजीब सी खामोशी भर गई।
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अनकहा स्पर्श
कुछ देर बाद नेहा चाय बनाने गई। कप रखते हुए उसके हाथ आयुष के हाथ से टकरा गए। दोनों ने एक पल के लिए एक-दूसरे की आँखों में देखा।
वो नज़रें हज़ार बातें कह गईं, जो होंठों से कभी नहीं कही गई थीं।
आयुष ने तुरंत नज़रें झुका लीं। नेहा भी मुस्कुराकर दूसरी तरफ़ देखने लगी। लेकिन उस छोटे से स्पर्श ने दोनों के दिल में हलचल मचा दी थी।
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उस रात आयुष घर लौटा तो नींद नहीं आई। उसके दिमाग में बार-बार नेहा का चेहरा घूम रहा था। उसकी आँखों की उदासी और मुस्कान की झिलमिलाहट दोनों उसके दिल को छू गईं।
आयुष खुद से सवाल करता रहा –
“ये दोस्त की बीवी है… मेरे लिए सिर्फ़ एक दोस्त की पत्नी। फिर क्यों दिल बार-बार उसी तरफ़ खिंच रहा है?”
लेकिन दिल और दिमाग़ की लड़ाई तो अभी शुरू हुई थी…